कोरोनावायरस आज पूरी दुनिया में परेशानी का सबब बन चुका है। भारत में कोरोनावायरस के छह लाख से ज्यादा मामले आ चुके हैं। कोरोनावायरस के कारण लाखों लोगों का रोजगार छिन गया है। लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घरों को वापस लौट रहे हैं।
ऐसी ही एक कहानी गोरखपुर के खोराबार ब्लॉक के अंतर्गत एक गांव के एक नौजवान की है जो अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए गुजरात के सूरत शहर में रहता था। लाकडाउन होने के पश्चात उसका भी रोजगार छिन गया। वह वहां पर पेंटिंग का काम करता था लेकिन लाकडाउन होने के पश्चात उसने सब्जी बेचकर अपना पेट भरने का इंतजाम किया। कुछ दिन बाद सरकार के प्रयास के कारण श्रमिक स्पेशल ट्रेन द्वारा उसे प्रयागराज लाया गया और फिर वहां से बस के माध्यम से उसके गृह जनपद गोरखपुर भेजा गया। नौजवान ने बताया कि उसके साथ उसकी पत्नी और बच्चे भी साथ में रहते थे लेकिन लॉकडाउन की मार की वजह से वह अपने परिवार के साथ अपने गांव वापस आ गया।
गांव पर आने के बाद उसके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। उसने गोरखपुर से देवरिया जाने वाली सड़क के किनारे ठेला लगाकर मक्का बेचने का काम शुरू किया। जिससे उसको प्रतिदिन दो-चार सौ मिल जाते हैं। इस तरह से वह अपना रोजी-रोटी का इंतजाम कर पा रहा है। उसने बताया कि हम यहीं पर कुछ न कुछ काम करेंगे लेकिन वापस बाहर नहीं जाएंगे। उसने यह भी कहा जिन लोगों ने यह दुर्दशा खेली है वही लोग जानते हैं कि वह समय कैसे बीता है। कई कई दिनों तक हम भूखे रहते थे। हमारे बच्चे भूखे रहते थे लेकिन हमें कहीं से कोई राह नजर नहीं आता था इसलिए हमने अपने गांव वापस आने का फैसला किया। गांव आखिर तो गांव ही है जहां हम कम संसाधनों में भी अपने जीवन को बिता सकते हैं। इस तरह से हजारों लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने गांव को वापस आए हैं और रोजगार की तलाश में छोटे-मोटे काम शुरू कर रहे हैं।
कलाम फाउंडेशन ऐसे ही छोटे-छोटे प्रवासी मजदूरों को सहयोग करने के लिए “हम हैं ना” कैंपेन शुरू किया है। इस कैंपेन के माध्यम से प्रवासी मजदूरों को उनका अपना कारोबार शुरू करने के लिए बिना ब्याज का लोन उपलब्ध करवाया जा रहा है जिससे भी अपने व्यवसाय को पुनः शुरू कर सकें।